एलपीजी सुधार ( LPG Reforms )
एलपीजी (LPG) सुधारों की घोषणा 1991 में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने की थी जिसके तहत भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया गया। वैश्वीकरण उदारीकरण और निजीकरण जैसी नीतियों का परिणाम है।
वैश्वीकरण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
- आर्थिक वृद्धि – 1991 के बाद से हमने देखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में काफी वृद्धि हुई है। अगर हम पुराने आंकड़ों को देखें तो 1950 से 1980 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 3.5% थी। लेकिन 2002 और 2012 के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था 7% से 8% की गति से बढ़ी। इसका मतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय लोगों को वैश्वीकरण से लाभ हुआ हैं।
- रेमिटेंस ( Remittance ) – विदेशों में रहने वाले भारत के नागरिकों द्वारा भारत को भेजा जाने वाला धन, जिसे हम प्रेषण ( Remittance ) कहते हैं। 1991 में, 2.1 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस भारत में आया, लेकिन 2017 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में रेमिटेंस, 68 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। आज भारत दुनिया में रेमिटेंस का सबसे बड़ा रिसीवर है।
- निवेश – भारत में विदेशी निवेश की वृद्धि बहुत तेजी से हुई है। 1991 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भारत के GDP का केवल 0.1% था। लेकिन आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भारत की जीडीपी का 2% तक पहुंच चुका है।
- रोजगार – वैश्वीकरण के कारण भारत में लाखों नई नौकरियां पैदा हुई है। जैसे आउटसोर्सिंग वैश्वीकरण प्रक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक है। आउटसोर्सिंग में, एक कंपनी बाहरी स्रोतों से नियमित रूप से सेवा प्राप्त करती है, ज्यादातर अन्य देशों से, जो देश के कानूनी सलाह, विज्ञापन, IT सर्विसेज, और अन्य सेवाओं देश के भीतर प्राप्त करती है।
- निजीकरण – 1991 से पहले, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर निर्भरता के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि में गतिरोध आया था। पहले जो निजी कंपनियां थीं, उन्हें देश में कुछ भी बनाने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता थी। 1991 के बाद से हमनें सरकारी कंपनियों का निजीकरण शुरू किया और कई नियमों में ढील के कारण, भारत की जीडीपी दर में काफी वृद्धि हुई।
वैश्वीकरण से उपभोक्ताओं को लाभ।
अधिक विकल्प – वैश्वीकरण के कारण, भारत में लाखों विदेशी उत्पाद बेचे जाते हैं और हजारों विदेशी कंपनियाँ भारत में काम करती हैं। आज, यदि हम कोई उत्पाद खरीदते हैं, तो हमारे पास कई विकल्प हैं, लेकिन पहले एसा नहीं था, तब हमारे पास केवल भारतीय उत्पाद थे। उन उत्पादों की गुणवत्ता भी कम थी। लेकिन आज, प्रतिस्पर्धा के कारण, उत्पादों की कीमते कम है और इनकी गुणवत्ता भी अधिक है। देखा जाए वैश्वीकरण से उपभोक्ताओं को काफी लाभ हुआ है।
वैश्वीकरण का भारतीय उद्योग पर प्रभाव।
जब 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था खुली, तब से भारतीय उद्योगों के लिए एक नया दौर शुरू हुआ। 1991 में उदारीकरण और निजीकरण जैसी नीतियों को अपनाकर, हमने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया। जिसके कारण कई विदेशी कंपनियों ने भारत में निवेश किया, वो अपने साथ नई तकनीक लाई जिससे भारतीय उद्योगों को भी लाभ हुआ।
वैश्वीकरण के कारण विशेष रूप से फार्मास्युटिकल, सूचना प्रौद्योगिकी, रसायन, परिधान, चमड़ा, कृषि, विनिर्माण आदि जैसे क्षेत्रों को लाभ हुआ।
वैश्वीकरण से भारत के आईटी क्षेत्र को सबसे अधिक लाभ हुआ।
सूचान प्रौद्योगिकी क्षेत्र (IT Sector) – भारतीय आईटी क्षेत्र को वैश्वीकरण से काफी बढ़ावा मिला है। भारत का आईटी क्षेत्र 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.7% योगदान देता है। भारत से 98 बिलियन डॉलर की आईटी सेवाएं निर्यात की जाती हैं। भारतीय आईटी क्षेत्र 2020 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 4.36 मिलियन लोगों को रोजगार देता है।
वैश्वीकरण का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव।
वैश्वीकरण का भारतीय संस्कृति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। इस बदलाव को हम खुद देख सकते हैं। हमारा भोजन, फैशन, पोशाक और रहने का तरीका धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया। देखा जाए पश्चिमी प्रभाव अन्य देशों की तुलना में भारत में अधिक प्रभावी है। समय के साथ भारतीय संस्कृति, शिक्षा, संस्कार और पहनावा सब कुछ विलुप्त हो गया।
वैश्वीकरण का भारतीय कृषि पर प्रभाव।
वैश्वीकरण से कृषि क्षेत्र को भी लाभ हुआ है, इससे भारत के कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है, हालांकि सरकार को कई फसलों के लिए सब्सिडी देनी पड़ती है।
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