रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली। | Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय, लेखक, भाषा शैली, रचनाएँ और हिंदी साहित्य में योगदान | Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

रामधारी सिंह दिनकर कौन थे? 

रामधारी सिंह दिनकर एक भारतीय हिंदी कवि, निबंधकार, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे. रामधारी सिंह दिनकर जी को सबसे प्रमुख हिंदी कवियों में से एक के रूप में याद किया जाता है. उन्हें ‘वीर रास’ का सबसे महान हिंदी कवि माना जाता है. आजादी से पहले लिखी गई उनकी राष्ट्रवादी कविताओं ने उन्हें ‘राष्ट्रीय कवि’ की पहचान दिलाई थी।

दिनकर ने शुरू में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन बाद में वह गांधीवादी बन गए. हालाँकि, वे खुद को “बुरा गांधीवादी” कहते थे क्योंकि उन्होंने युवाओं में आक्रोश और बदले की भावनाओं का समर्थन किया था।

उनकी कविताओं में ‘वीर रस’ का भाव है और उनमें किसी भी राष्ट्रवादी को प्रेरित करने की क्षमता थी।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय

Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
पूरा नामरामधारी सिंह दिनकर
{Ramdhari Singh
Dinkar}
जन्म 23 सितंबर 1908
जन्म स्थानसिमरिया, मुंगेर, बिहार
मृत्यु24 अप्रैल 1974
{65 वर्ष की आयु में}
मृत्यु स्थानबेगूसराय, बिहार, भारत
नागरिकता भारतीय
पेशा कवि, लेखक, निबंधकार,
साहित्यिक आलोचक,
पत्रकार, व्यंग्यकार,
स्वतंत्रता सेनानी
और संसद सदस्य
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि राष्ट्रकवि {भारत के कवि}
मुख्य
रचनाएँ
रश्मिरथी, उर्वशी, कुरुक्षेत्र,
संस्कृति के चार अध्याय,
परशुराम की प्रतीक्षा,
हुंकार, हाहाकार, चक्रव्यूह,
आत्मजयी, वाजश्रवा के
बहाने आदि।
उल्लेखनीय
पुरस्कार 
1959: साहित्य
अकादमी पुरस्कार
1959: पद्म भूषण
1972: भारतीय ज्ञानपीठ
अवधि
/काल
आधुनिक काल
स्कूल मोकामाघाट हाई स्कूल
कॉलेज पटना विश्वविद्यालय

रामधारी सिंह दिनकर का परिवार

पिता का नामबाबू रवि सिंह
माता का नाममनरूप देवी
भाई-बहनकेदारनाथ सिंह
& रामसेवक सिंह
रामधारी सिंह
दिनकर की
पत्नी का नाम
ज्ञात नहीं

रामधारी सिंह दिनकर ने राष्ट्रीय भावनाओं से भरे क्रांतिकारी संघर्ष को प्रेरित करने वाली अपनी शक्तिशाली कविताओं के कारण अपार लोकप्रियता हासिल की. उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से जाना जाता था।

दिनकर जी के साहित्यिक जीवन की विशेषता यह थी कि वे राजनीति में शामिल होने के बावजूद सरकारी सेवा में रहते हुए स्वतंत्र रूप से साहित्य की रचना करते रहे। उनकी साहित्यिक चेतना उसी प्रकार राजनीति से विलग रही जिस प्रकार कमल जल में रहकर भी जल से पृथक रहता है।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय। | Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

रामधारी सिंह दिनकर का प्रारंभिक जीवन

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था. दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और जब दिनकर दो वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. इसीलिए दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी विधवा मां ने किया था. दिनकर का बचपन देहात में बीता, जहाँ दूर-दूर तक फैली खेतों की हरियाली, आम के बाग और कंसास का फैलाव था. प्रकृति की इस सुंदरता का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, शायद इसीलिए उनपर वास्तविक जीवन की कठोरता का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा।

रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा

दिनकर जी ने अपनी प्राम्भिक शिक्षा गाँव के एक प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की. उन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा ‘मोकामाघाट हाई स्कूल’ से प्राप्त की. इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे. एक छात्र के रूप में, दिनकर को कई वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा, जब वे मोकामाघाट हाई स्कूल के छात्र थे, तो शाम 4 बजे स्कूल बंद होने तक उनके लिए वहाँ रुकना संभव नहीं था. क्योंकि लंच ब्रेक के बाद उंन्हे घर वापस जाने के लिए स्टीमर पकड़ने के लिए क्लास छोड़नी पड़ती थी. वह हॉस्टल का खर्चा भी नहीं उठा सकता थे इसीलिए उंन्हे क्लास को छोड़ना पड़ता था।

एक छात्र के रूप में, उनके पसंदीदा विषय इतिहास, राजनीति और दर्शन थे. स्कूल में और बाद में कॉलेज में, उन्होंने हिंदी, संस्कृत, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था।

रामधारी सिंह दिनकर जी ने 1928 में मैट्रिक के बाद, पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया था. जिसके बाद अगले ही साल उन्हें एक स्कूल में ‘प्रधानाध्यापक’ नियुक्त किया गया. वह 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक के रूप में कार्यरत रहे. दिनकर जी का राजनीतिक जीवन भी था, वे तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए, और उन्होंने 3 अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया. वह 1960 के दशक की शुरुआत में भागलपुर विश्वविद्यालय (भागलपुर, बिहार) के कुलपति भी थे।

दिनकर जी इकबाल, रवींद्रनाथ टैगोर, कीट्स और मिल्टन से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का बंगाली से हिंदी में अनुवाद भी किया था।

निधन

दिनकर जी का निधन 24 अप्रॅल 1974 को बेगूसराय, बिहार में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर का हिंदी साहित्य में योगदान 

दिनकर जी की गणना आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है हिंदी काव्य जगत में क्रांति और और प्रेम के संयोजक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है विशेष रूप से राष्ट्रीय चेतना एवं जागृति उत्पन्न करने वाले कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है।

रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली

रामधारी सिंह दिनकर की भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है. जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है. कहीं कहीं उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी उपयोग किया गया है जिससे उनकी भाषा और भी प्रवाहमयी हो गयी है. दिनकर जी की भाषा भावों के अनुकूल परिवर्तनशील भी है. उसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया गया है. भाषा में कहीं कहीं व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी दिखलाई पड़ती है. दिनकर जी की रचनाओं में विशेषकर वीर ,रौद्र ,करुण और शांत रसों का सफलतापूर्वक प्रयोग हुआ है।

दिनकर जी के काव्य में तुकांत और अतुकांत दोनों प्रकार के छंद मिलते हैं. कुरुक्षेत्र में मात्रिक छंदों के साथ साथ वार्णिक छंदों का भी अच्छा प्रयोग हुआ है. अलंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि का विशेष प्रयोग हुआ है।

कार्य {Work}

दिनकर की पहली कविता 1924 में छात्र सहोदर (‘छात्रों का भाई’) नामक पत्र में प्रकाशित हुई थी. दिनकर का पहला कविता संग्रह रेणुका नवंबर 1935 में प्रकाशित हुआ था।

दिनकर जी ने सामाजिक और आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की है. उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। 

रेणुका – रेणुका में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण परिलक्षित होता है, पर साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से त्रस्त मन की वेदना का परिचय भी मिलता है।

उर्वशी – उर्वशी का विषय प्रेम, जुनून और आध्यात्मिक स्तर पर पुरुष और महिला के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमता है, उर्वशी स्वर्ग परित्यक्ता एक अप्सरा की कहानी है. उनका कुरुक्षेत्र महाभारत के शांति पर्व पर आधारित एक कथात्मक कविता है. उनकी रश्मिरथी को हिंदू महाकाव्य महाभारत के सर्वश्रेष्ठ संस्करणों में से एक माना जाता है।

Krishna Ki Chaetavani उन घटनाओं के बारे में रचित एक और कविता है जिसके कारण महाभारत में कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ था।

हुंकार – हुंकार में कवि अतीत के गौरव-गान की अपेक्षा वर्तमान दैत्य के प्रति आक्रोश प्रदर्शन की ओर अधिक उन्मुख जान पड़ता है।

अपने संस्कृति के चार अध्याय में, उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और स्थलाकृति के बावजूद, भारत एकजुट है, क्योंकि “हम कितने भी भिन्न हो सकते हैं, हमारे विचार एक ही हैं”।

दिनकर जी के बारे में अन्य लेखकों के कथन

हरिवंश राय बच्चन ने कहा था कि, “दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये.”

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि दिनकर उन लोगों में बहुत लोकप्रिय थे जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं थी और वे अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम के प्रतीक थे।

हिंदी के जाने-माने लेखक काशीनाथ सिंह ने कहा है कि वे साम्राज्यवाद-विरोधी और राष्ट्रवाद के कवि थे।

रामबृक्ष बेनीपुरी ने लिखा कि दिनकर देश में क्रांतिकारी आंदोलन को आवाज दे रहे हैं. नामवर सिंह ने लिखा कि वह वास्तव में अपने युग के सूर्य थे।

मशहूर कवि प्रेम जनमेजय के अनुसार दिनकर जी ने गुलाम भारत और आजाद भारत दोनों में अपनी कविताओं के जरिये क्रांतिकारी विचारों को विस्तार दिया. जनमेजय ने कहा, ‘‘आजादी के समय और चीन के हमले के समय दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाया.’’

हिंदी लेखक राजेंद्र यादव ने उनके बारे में कहा है, “वे हमेशा पढ़ने के लिए बहुत प्रेरणादायक थे. उनकी कविता पुन: जागृति के बारे में थी. वह अक्सर हिंदू पौराणिक कथाओं में शामिल होते थे और महाकाव्यों के नायकों का उल्लेख करते थे जैसे कर्ण।

पुरस्कार/सम्मान

  • दिनकर जी को उनकी रचना कुरुक्षेत्र के लिये काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार से सम्मान मिला।
  • 1959 में उन्हें उनके काम संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • 1959 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
  • भागलपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलाधिपति और बिहार के राज्यपाल जाकिर हुसैन, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, ने उन्हें डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। 
  • गुरुकुल महाविद्यालय द्वारा उन्हें विद्यावाचस्पति के रूप में सम्मानित किया गया था।
  • 8 नवंबर 1968 को उन्हें राजस्थान विद्यापीठ द्वारा साहित्य-चूड़ामणि से सम्मानित किया गया था।
  • 1972 में, रामधारी सिंह दिनकर को उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • 1952 में, उन्हें राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया था और वे लगातार तीन बार राज्य सभा के सदस्य रहे थे।
  • दिनकर के प्रशंसक व्यापक रूप से मानते हैं कि वह वास्तव में राष्ट्रकवि (भारत के कवि) के सम्मान के पात्र थे।

मरणोपरांत मान्यता {Posthumous Recognition}

30 सितंबर 1987 को, उनकी 79वीं जयंती के अवसर पर, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी।

1999 में, रामधारी सिंह दिनकर उन हिंदी लेखकों में से एक थे, जिन्हें भारत की भाषाई सद्भाव का जश्न मनाने के लिए भारत सरकार द्वारा जारी स्मारक डाक टिकटों के एक सेट पर चित्रित किया गया था।

सरकार ने खगेंद्र ठाकुर द्वारा लिखित दिनकर की जन्मशती पर एक पुस्तक को रिलीज किया था।

सितंबर 2008 में, कवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी 100 वीं जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई थी, सीएम नीतीश कुमार ने दिनकर चौक पर दिनकर की प्रतिमा का अनावरण किया और दिवंगत कवि को पुष्पांजलि अर्पित की थी. इस मौके पर डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी और ऊर्जा मंत्री रामाश्रय प्रसाद सिंह भी मौजूद थे. इस अवसर पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के कलाकारों ने देशभक्ति गीतों का विशेष कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया था।

उनके सम्मान में, उनका चित्र भारत के प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा 2008 में भारत की संसद के सेंट्रल हॉल में स्थापित किया गया था।

22 मई 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में दिनकर के उल्लेखनीय कार्यों संस्कृति के चार अध्याय और परशुराम की प्रतीक्षा के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन किया था।

तथ्य {Facts}

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल दिनकर जी को अपने बेटे की तरह मानते थे. दिनकर के काव्य करियर के शुरुआती दिनों में जायसवाल ने उनकी हर तरह से मदद की थी।

1928 में, दिनकर ने भी साइमन कमीशन के खिलाफ गांधी मैदान की रैली में भाग लिया था।

कुरुक्षेत्र में, उन्होंने स्वीकार किया कि युद्ध विनाशकारी है, लेकिन तर्क दिया कि यह स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।

दिनकर की कविता रवींद्रनाथ टैगोर और मुहम्मद इकबाल से बहुत प्रभावित थी. इसी तरह, उनके राजनीतिक विचारों को महात्मा गांधी और कार्ल मार्क्स दोनों ने ही आकार दिया था।

1920 में दिनकर ने पहली बार महात्मा गांधी को देखा था. लगभग इसी समय उन्होंने सिमरिया में मनोरंजन पुस्तकालय की स्थापना की थी।

उन्हें सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक हिंदी कवियों में से एक माना जाता है. वह भारतीय स्वतंत्रता से पहले के दिनों में लिखी गई अपनी राष्ट्रवादी कविता के परिणामस्वरूप विद्रोह के कवि के रूप में उभरे थे।

उनका अधिकांश बचपन अत्यधिक गरीबी में बीता जो उनकी कविता में परिलक्षित होता था।

रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ {Works of Ramdhari Singh Dinkar}

उनकी कृतियाँ अधिकतर वीर रस की हैं, हालाँकि उर्वशी इसका अपवाद हैं. उनकी कुछ महान कृतियाँ रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा हैं. ​उन्हें भूषण के बाद से ‘वीर रस’ के सबसे महान हिंदी कवि के रूप में जाना जाता है।

रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह

  • रेणुका / रामधारी सिंह “दिनकर” (1935)
  • हुंकार / रामधारी सिंह “दिनकर” (1938)
  • रसवन्ती / रामधारी सिंह “दिनकर” (1939)
  • द्वन्द्वगीत / रामधारी सिंह “दिनकर” (1940)
  • कुरुक्षेत्र / रामधारी सिंह “दिनकर” (1946)
  • धूपछाँह / रामधारी सिंह “दिनकर” (1946)
  • सामधेनी / रामधारी सिंह “दिनकर” (1947)
  • बापू / रामधारी सिंह “दिनकर” (1947)
  • इतिहास के आँसू / रामधारी सिंह “दिनकर” (1951)
  • धूप और धुआँ / रामधारी सिंह “दिनकर” (1951)
  • रश्मिरथी / रामधारी सिंह “दिनकर” (1954)
  • नीम के पत्ते / रामधारी सिंह “दिनकर” (1954)
  • दिल्ली / रामधारी सिंह “दिनकर” (1954)
  • नील कुसुम / रामधारी सिंह “दिनकर” (1955)
  • नये सुभाषित / रामधारी सिंह “दिनकर” (1957)
  • सीपी और शंख / रामधारी सिंह “दिनकर” (1957)
  • परशुराम की प्रतीक्षा / रामधारी सिंह “दिनकर” (1963)
  • हारे को हरि नाम / रामधारी सिंह “दिनकर” (1970)
  • प्रणभंग / रामधारी सिंह “दिनकर” (1929)
  • सूरज का ब्याह / रामधारी सिंह “दिनकर” (1955)
  • कविश्री / रामधारी सिंह “दिनकर” (1957)
  • कोयला और कवित्व / रामधारी सिंह “दिनकर” (1964)
  • मृत्तितिलक / रामधारी सिंह “दिनकर” (1964)

अनुवाद

  • आत्मा की आँखें / डी० एच० लारेंस (1964)

खण्डकाव्य

  • उर्वशी / रामधारी सिंह “दिनकर” (1961)
  • चुनी हुई रचनाओं के संग्रह
  • चक्रवाल / रामधारी सिंह “दिनकर” (1956)
  • सपनों का धुआँ / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • रश्मिमाला / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • भग्न वीणा / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • समर निंद्य है / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • समानांतर / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • अमृत-मंथन / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • लोकप्रिय दिनकर / रामधारी सिंह “दिनकर” (1960)
  • दिनकर की सूक्तियाँ / रामधारी सिंह “दिनकर” (1964)
  • दिनकर के गीत / रामधारी सिंह “दिनकर” (1973)
  • संचयिता / रामधारी सिंह “दिनकर” (1973)
  • रश्मिलोक / रामधारी सिंह “दिनकर” (1974)

रामधारी सिंह दिनकर की बाल कविताएं 

  • चांद का कुर्ता / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • नमन करूँ मैं / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • सूरज का ब्याह (कविता) / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • चूहे की दिल्ली-यात्रा / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • मिर्च का मज़ा / रामधारी सिंह “दिनकर”

प्रतिनिधि रचनाएँ

  • दूध-दूध! / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • सिंहासन खाली करो कि जनता आती है / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • परंपरा / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • परिचय / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • दिल्ली (कविता) / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • झील / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • वातायन / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • समुद्र का पानी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • कृष्ण की चेतावनी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • ध्वज-वंदना / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • आग की भीख / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • बालिका से वधू / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • जियो जियो अय हिन्दुस्तान / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • कुंजी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • मनुष्य और सर्प / रश्मिरथी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • परदेशी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • एक पत्र / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • एक विलुप्त कविता / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • गाँधी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • आशा का दीपक / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • कलम, आज उनकी जय बोल / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • शक्ति और क्षमा / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • गीत-अगीत / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • लेन-देन / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • निराशावादी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • लोहे के मर्द / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • विजयी के सदृश जियो रे / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • समर शेष है / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • पढ़क्‍कू की सूझ / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • वीर / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • मनुष्यता / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • पर्वतारोही / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • करघा / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • चांद एक दिन / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • भारत / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • भगवान के डाकिए / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • जनतन्त्र का जन्म / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • शोक की संतान / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • जब आग लगे… / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • पक्षी और बादल / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • मेरे नगपति! मेरे विशाल! / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • लोहे के पेड़ हरे होंगे / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • सिपाही / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • रोटी और स्वाधीनता / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • अवकाश वाली सभ्यता / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • व्याल-विजय / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • माध्यम / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • स्वर्ग / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • कलम या कि तलवार / रामधारी सिंह “दिनकर”
  • हमारे कृषक / रामधारी सिंह “दिनकर”

रामधारी सिंह दिनकर की आलोचना 

साहित्यिक आलोचना

  • साहित्य और समाज, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • चिंतन के आयम, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • कवि और कविता, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • संस्कृति भाषा और राष्ट्र, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • कविता और शुद्ध कविता, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008

जीवनी {Biographies}

  • श्री अरबिंदो: मेरी दृष्टि में, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • स्मरणंजलि, लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
  • दिनकरनामा, डॉ दिवाकर, 2008

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला था?

1972 में, रामधारी सिंह दिनकर को उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

रामधारी सिंह दिनकर के माता-पिता का क्या नाम था?

रामधारी सिंह दिनकर के पिता का नाम बाबू रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था।

रामधारी सिंह दिनकर किस युग के कवि थे?

रामधारी सिंह दिनकर आधुनिक काल के थे।

रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम क्या था?

रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

कुरुक्षेत्र का प्रकाशन वर्ष क्या है?

1946

कुरुक्षेत्र का प्रकाशन कब हुआ था?

1946 में

रामधारी सिंह दिनकर कहां के रहने वाले थे?

रामधारी सिंह दिनकर सिमरिया, मुंगेर, बिहार के रहने वाले थे।

रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?

रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल 1974 को 65 वर्ष की उम्र में बिहार के बेगूसराय में हुई थी।

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