भाषा किसे कहते हैं? भाषा की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण

भाषा किसे कहते हैं? भाषा की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण (हिंदी व्याकरण)

भाषा किसे कहते हैं? 

भाषा की परिभाषा: 

परिभाषा: भाषा वह साधन है जिससे व्यक्ति दूसरों के भावों व विचारों को समझता है तथा अपने भावों व विचारों को दूसरों को समझाता है. भाषा के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करते हैं। 

सरल भाषा में कहा जाए जिस प्रकार एक सामान या स्वयं को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने के लिए किसी वाहन की आवश्कता होती है. उसी प्रकार हमे भावों व विचारो को दूसरे तक पहुंचाने के लिए भाषा की आवश्कता होती है।

उदाहरण: आपके अध्यापक आपको किसी विषय पर शिक्षा देते हैं. तो आप उनकी बातों को सुनकर समझते हैं. फिर आप लिखकर अध्यापक को यह समझाते हैं कि आपने क्या समझा? तथा आपके अध्यापक उसे पढ़कर समझते हैं कि उनकी समझायी गई बात आपको समझ में आई या नही. यह सब भाषा के माध्यम से होता है।

प्लेटो के अनुसार: विचार और भाषा में कुछ अंतर होता है, विचार आत्मा की मूक बातचीत है पर वही ध्वनि बनकर होठों पर प्रकट होती तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।

स्वीट के अनुसार: ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।

उपरोक्त परिभाषाओं से यह प्रकट होता है भाषा ध्वनि संकेतो की पद्धति है, जिसके माध्यम से मनुष्य विचारों का आदान-प्रदान करता है।

निष्कर्ष: भाषा एक सुसंबद्ध और सुव्यवस्थित पद्धति है. जिसमे कर्ता कर्म क्रिया आदि का व्यवस्थित रूप आता है।

भाषा के प्रकार

1. लिखित भाषा 

2. मौखिक भाषा

3. सांकेतिक भाषा

लिखित भाषा: जब हम अपने भावों विचारों को लिखकर लोगों को समझाते हैं तथा दूसरे उसे पढ़कर समझते हैं उसे लिखित भाषा कहते हैं. लिखित भाषा को सीखने के लिए विशेष अध्ययन की आवश्कता होती है किसी भाषा को लिखने के लिए उसकी व्याख्या का सम्पूर्ण ज्ञान अति आवश्यक है।

उदाहरण – समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, लेख आदि।

मौखिक भाषा: जब हम अपने भावों विचारों को मुख से बोल कर लोगों को समझाते हैं तथा दूसरे उसे सुनकर समझते हैं उसे मौखिक भाषा कहते हैं।

मौखिक भाषा को सीखने का विशेष प्रयत्न नही करना पड़ता। बच्चा जिस वातावरण में रहता है. वह उसी वातावरण की भाषा भी सीख लेता है।

उदाहरण के लिए, हम अपनी मातृभाषा परिवार और समाज से सीखते हैं।

उदाहरण – रेडियो, टेपरिकॉर्डर आदि।

सांकेतिक भाषा: जब हम अपने भावो और विचारों को संकेतों के माध्यम से दूसरों को समझाते हैं तथा दूसरों के संकेतों को समझते हैं उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं। 

उदाहरण के लिए छोटे बच्चे उसकी मां के बीच की भाषा सांकेतिक भाषा हैं. छोटा बच्चा अपनी बातों को संकेतों के माध्यम से अपनी मां को समझाता है जैसे अधिकतर बच्चे जब भूखे होते हैं तो वे रोने लगते हैं. कपड़े गीले करने पर भी वह रोने लगते हैं।

सांकेतिक भाषा का उपयोग दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।

आपने यात्रा करते हुए देखा होगा की सड़क के किनारे कुछ चिन्ह बने होते हैं जो हमारी काफी मदद करते हैं।  

उदाहरण – यातायात के चिन्ह, बच्चों का इशारों में बात करना आदि।

मानक भाषा: मानक हिंदी को स्टैंडर्ड हिंदी भी कहा जाता है इसका मुख्य आधार खड़ी बोली है. वैसे मानक हिंदी उस हिंदी को कहते है जो हिंदी शब्दों के नंबरों में बोली जाती है, मानक हिंदी पत्र पत्रिकाओं तथा रेडियो और दूरदर्शन पर बोली जाने वाली भाषा है. जब हम यह कहते है कि गैर हिंदी भाषी प्रदेशों में भी हिंदी का प्रचार प्रसार करना चाहिए तब हिंदी से हमारा तात्पर्य मानक हिंदी से है न कि अवधि ब्रज बघेली या मैथिली से।

जैसे:- समाचार पत्र, पुस्तक, मैगजीन आदि।

लिपि

लिपि का शाब्दिक अर्थ है लिखावट या लिखने का ढंग किसी भी भाषा को लिखने हेतु कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उसे लिपि कहते हैं।

भाषा और उनकी लिपियां:

अंग्रेजी  रोमन 
संस्कृतदेवनागरी
पंजाबीगुरमुखी
उड़ियाओड़िया
हिंदीदेवनागरी
उर्दूफारसी 
कन्नड़ब्राह्मी
देवनागरीबंगाली
बांग्लातेलुगू 
गुजरातीदेवनागरी
तमिल ब्राम्ही

बोली: एक छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को बोली कहते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी एक भाषा है जबकि मैथिली,अवधी, ब्रज कन्नौजी,भोजपुरी आदि हिंदी की बोलियां कहलाती हैं।

जब कोई बोली विस्तृत क्षेत्र में बोली जाने लगती हैं, तब वह भाषा बन जाती है।

मध्यकाल में ब्रज क्षेत्र की बोली व्यापक साहित्यिक भाषा बन गई थी इसलिए इसे ब्रजभाषा कहा जाने लगा।

राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा:

राष्ट्रभाषा: संविधान के अनुसार भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है, हिंदी और अंग्रेजी दोनों को भारत की आधिकारिक भाषा माना जाता है।

राजभाषा: राजभाषा का अर्थ है सरकारी अधिकारी कामकाज की भाषा जो भाषा किसी भी देश के संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कामकाज हेतु भाषा होती है उसे राजभाषा कहते हैं।

दुनियां में बहुत सी भाषाएं बोली जाती है. भाषा का मानव जीवन में ही नही अपितु पशु-पक्षी में भी महत्वपूर्ण स्थान है. आप लोगो ने अपने आस पास बंदरों, चिड़ियों, गाय, बकरी, भैंस को अपनी भाषा में एक दूसरे से बात करते देखा होगा। परंतु उनकी बोली को भाषा नही कहा जा सकता। इसी प्रकार आदिमानव अपनी बातों को एक दूसरे को समझाने हेतु संकेतो का सहारा लेते थे. परंतु संकेतो द्वारा पूरी बात और आंतरिक भावनाओं को समझ पाना बहुत मुश्किल होता था. इसी असुविधा को दूर करने के लिए मुख से उच्चारित ध्वनियों को मिलाकर शब्द बनाए गए और शब्दों के मेल से भाषा।

भाषा का शाब्दिक रूप संस्कृत भाषा के भाष धातु से बना है. जिसका अर्थ होता है बोलना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

भाषा के कितने भेद होते हैं?

भाषा के तीन भेद होते हैं।
1. मौखिक भाषा 
2. लिखित भाषा 
3. सांकेतिक भाषा 

भाषा क्यों महत्वपूर्ण है?

भाषा महत्वपूर्ण है क्योंकि भाषा का उपयोग करके हम एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं. भाषा के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करते हैं।

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