1967 के भारत-चीन युद्ध के कारण और परिणाम। | History of 1967 Indo-China War in Hindi
भारत-चीन नाथू ला और चो ला बैटल 1967
नाथू ला और चो ला संघर्षों को आमतौर पर 1967 के भारत-चीन युद्ध के रूप में जाना जाता है। जिसमें कई हिंसक झड़पें हुईं, और कई सैनिक शहीद हुए। इस छोटे से युद्ध में चीन को भारी नुकसान हुआ और उसे हार का सामना करना पड़ा।
इस जीत ने भारतीय नेतृत्व (सरकार) और भारतीय सेना को एक मनोवैज्ञानिक बढ़ावा दिया।
1967 भारत-चीन युद्ध
के बीच लड़ा गया | भारत और चीन |
दिनांक | 11 से 14 सितंबर 1967 (नाथू ला) 1 अक्टूबर 1967 (चो ला) |
स्थान | सिक्किम-चीन सीमा के पास नाथू ला और चो ला। |
परिणाम | भारतीय विजय |
देश के प्रमुख | भारत जाकिर हुसैन (भारत के राष्ट्रपति) इंदिरा गांधी (भारत की प्रधान मंत्री) चीन माओ ज़ेडॉन्ग (चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष) |
जनहानि और नुकसान | भारत (भारतीय स्रोत) 88 सैनिक शाहिद हुए 163 घायल हुए चीन (भारतीय स्रोत) 340 मारे गए 450 घायल हुए (चीन ने वास्तविक आंकड़े कभी नहीं बताए) |
पृष्ठभूमि (Background)
नाथू ला का महत्व
नाथू ला दर्रा एक प्राकृतिक सीमा के रूप में कार्य करने वाले वाटरशेड पर स्थित है। नाथू ला दर्रा सिक्किम को चीन के तिब्बत से जोड़ता है। यह दर्रा भारतीय सेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय सेना को गोलाबारी के लिए सामरिक लाभ प्रदान करता है।
1962 के युद्ध में हार के बाद भारत ने सीमा पर अपनी सेना दोगुनी कर दी थी। नाथू ला एक ऐसी जगह थी जहां सिर्फ 20-30 मीटर की दूरी पर भारतीय और चीनी सैनिक तैनात थे।
पाकिस्तान की मदद करने के लिए, 16 सितंबर 1965 को 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, चीन ने भारत को नाथू ला और जलेप ला दर्रा खाली करने का अल्टीमेटम जारी किया। हेड कमांड के ऑर्डर के बाद जलेप ला को खाली कर दिया गया लेकिन नाथू ला पर तैनात जीओसी 17 माउंटेन डिवीजन के मेजर जनरल सगत सिंह ने नाथू ला को खाली करने से मना कर दिया। उन्होंने अपने सिनियर की बात नही मानी जिनकी वजह से नाथू आज भी भारत के पास है।
17 अगस्त 1967 से चीनी सैनिकों ने सिक्किम के नाथू ला में खाइयां खोदना शुरू कर दिया, जिसका विरोध करते हुए भारतीय सेना ने चीनी कमांडर झांग गुओहुआ को वहां से हटने के लिए कहा। फिर उन्होंने खाई को भर दिया और मौजूदा 21 लाउडस्पीकरों में 8 और लाउडस्पीकर लगाकर वहां से चले गए।
जिसके बाद सीमा को इंगित करने के लिए भारतीय सेना ने कांटेदार तार लगाने का फैसला किया। कांटेदार तार लगाने का काम 18 अगस्त से शुरू हुआ, जिसका चीनी सैनिकों ने विरोध किया, दो दिन बाद चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना के खिलाफ हथियारों के साथ पोजीशन ली जो तार बिछा रहे थे लेकिन एक भी गोली नहीं चली।
7 सितंबर को फिर से, जब भारतीय सैनिक नाथू ला के दक्षिणी किनारे पर तार लगा रहे थे तब चीनी कमांडर सेना के साथ वहाँ पहुँचे और भारतीय लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह को गंभीर चेतावनी दी, जिसके बाद कर्नल राय सिंह ने काम को रुकवा दिया, लेकिन बहस ज्यादा बढ़ जाने पर हाथापाई शुरू हो गई जिसमें दोनों तरफ के सैनिक घायल हुए। चीनी सैनिक अपने दो सैनिकों के घायल होने पर गुस्सा थे।
10 सितंबर को, "चीनी सरकार भारत सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहती है की: चीनी सीमा रक्षा सैनिक चीन-सिक्किम सीमा पर स्थिति के विकास को करीब से देख रहे हैं। यदि भारतीय सैनिक भड़काऊ घुसपैठ करना जारी रखते हैं, तो भारत सरकार को सभी गंभीर परिणामों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।" From Indianexpress
11 सितंबर को स्थिति को व्यवस्थित करने के लिए, भारतीय टॉप कमांडर ने सीमा को इंगित करने के लिए नाथुला से सेबू ला तक दर्रे के केंद्र में एक और तार लगाने का फैसला किया।
नाथू ला बैटल 1967
11 सितंबर 1967 की सुबह, भारतीय सेना के इंजीनियरों और सैनिकों ने नाथू ला से सेबू ला तक सीमा पर बाड़ लगाना शुरू कर दिया। इसके तुरंत बाद एक चीनी राजनीतिक आयुक्त, रेन रोंग, इन्फेंट्री के एक हिस्से के साथ वहां पहुंचे और रोंग ने भारतीय लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव से तार बिछाने से रोकने को कहा, लेकिन कर्नल राय ने यह कहते हुए रुकने से इनकार कर दिया कि उन्हें आदेश दिया गया है।
चीनी पक्ष के विरोध के बाद, कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल राय रेन रोंग के साथ बातचीत करने गए, जैसे ही राय बातचीत करके बाहर निकले, उनके निकलते ही चीनी सेना ने गोलियां चला दीं और लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह जमीन पर गिर पड़े।
इस पर भारतीय पैदल सेना बटालियन ने चीनी पोस्ट पर हमला कर दिया। चीनी सेना ने मशीन गन से हमला किया, भारतीयों ने तोपखाने से जवाब दिया।
हालांकि शुरुआत में भारत को काफी नुकसान हुआ, लेकिन बाद में भारतीय सेना ने तोपखाने से कई चीनी चौकियों को तबाह कर दिया। भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया के बाद चीनी सेना बैकफुट पर चली गई और फाइटर जेट लाने की धमकी दी।
13 सितंबर को सुबह 5.30 बजे, भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को सिक्किम-तिब्बत सीमा पर बिना शर्त संघर्ष विराम की पेशकश करते हुए एक नोट भेजा, लेकिन चीनी सैनिकों ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
14 सितंबर तक स्थिति काफी हद तक शांतिपूर्ण रही, उसके बाद 15 सितंबर को, चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के शवों को हथियार और गोला-बारूद के साथ सौंप दिया, कहा कि वे “चीन-भारत मित्रता को बनाए रखने” के हित में काम कर रहे है।
चो ला बैटल 1967
1 अक्टूबर 1967 को फिर से भारत और चीन के बीच एक और संघर्ष चो ला में हुआ, जो नाथू ला से कुछ किलोमीटर उत्तर में सिक्किम-तिब्बत सीमा पर एक और दर्रा। इस बार भारतीय सेना ने चीनी सेना को उनकी चौकी से लगभग 3 किलोमीटर पीछे धकेल दिया।
जनहानि (Casualties)
भारत के रक्षा मंत्रालय ने बताया: दो हिसक झाड़पो के दौरान भारतीय सेना के 88 सैनिक शहीद हुए और 163 घायल हुए, जबकि चीनी सेना में 340 सैनिक मारे गए और 450 घायल हुए।
Note: चीन ने आजतक 1967 में मारे गए अपने सैनिकों की संख्या का खुलासा नही किया।
1967 के भारत-चीन युद्ध का परिणाम
इस युद्ध का परिणाम स्पष्ट था, भारत की जीत हुई, जिससे भारतीय सेना का मनोबल बढ़ा कि चीन को हराना नामुमकिन नहीं है. इसका फायदा हमें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मिला, उस वक्त चीन ने पाकिस्तान की मदद नहीं की।
1967 भारत-चीन युद्ध के कारण

- 1- सीमा विवाद – भारत-चीन सीमा विवाद बहुत पहले से था, मैकमोहन रेखा के अनुसार, पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी भारत-चीन सीमा है, लेकिन सीमा का सीमांकन नहीं किया गया था, इसलिए 1960 के दशक में चुंबी घाटी में विवादित भूमि पर नियंत्रण को लेकर भारत और चीन के बीच रेस चल रही थी, क्योंकि जो भी शीर्ष पर होगा उसे युद्ध में अधिक सामरिक लाभ मिलेगा। यहीं कारण था यहाँ पर झड़पे होती रहती थी जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता गया।
- 2- अगस्त 1967, चीनी सैनिकों ने नाथू ला क्षेत्र में घुसपैठ की, सिक्किम के अंदर कुछ चीनी सैनिकों को देखने के बाद, भारतीय सैनिकों ने चीनी कमांडर को भारतीय क्षेत्र खाली करने के लिए कहा।
- कई मौखिक चेतावनियों के बावजूद भी, चीनी सैनिकों ने बार-बार नाथू ला में घुसपैठ की, जिसके बाद भारतीय सेना ने सीमा को चिह्नित करने के लिए तार लगाने का फैसला किया। 11 सितंबर को एक और तार लगाने का काम शुरू हुआ, जिसका चीनी सैनिकों ने विरोध किया, कुछ समय बाद उन्होंने भारतीय चौकी पर हमला कर दिया, जिसके बाद जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना के तोपखाने से कई चीनी बंकर नष्ट कर दिए, यह युद्ध 15 सितंबर तक चार दिनों तक चला। इसके बाद संघर्ष विराम की घोषणा की गई।
- 3- चीन में उथल-पुथल – कई विश्लेषकों का मानना है कि सांस्कृतिक क्रांति के कारण चीन में उथल-पुथल मची थी, इसलिए चीन ने भारत के खिलाफ आक्रामकता दिखाई। ये देखा गया है कि जब भी चीन में कोई आंतरिक समस्या होती है, तो चीन सीमा पर आक्रामकता दिखाना शुरू कर देता है।
लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न
1967 भारत चीन युद्ध कौन जीता था?
भारत
1967 भारत चीन युद्ध में चीन के कितने सैनिक मारे गए?
भारतीय स्रोतों के अनुसार, 1967 भारत चीन युद्ध में चीन के 340 सैनिक मारे गए और 450 घायल हुए।
Note: चीन ने आजतक 1967 में मारे गए अपने सैनिकों की संख्या का खुलासा नही किया।
1967 भारत चीन युद्ध का परिणाम क्या था?
इस युद्ध का परिणाम स्पष्ट था, भारत की जीत हुई।
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